सिनेमा में पर्यावरण पर बातचीत में पहली बार 3 स्वर्ण कमल विजेता एक मंच पर उपस्थित रिपोर्टः रंजीत डे। पटनाः गांधी मैदान में चल रहे पटना पुस्त...
सिनेमा में पर्यावरण पर बातचीत में पहली बार 3 स्वर्ण कमल विजेता एक मंच पर उपस्थित
रिपोर्टः रंजीत डे।
पटनाः गांधी मैदान में चल रहे पटना पुस्तक मेला में आज सिनेमा में पर्यावरण पर बातचीत में पहली बार 3 स्वर्ण कमल विजेता पाटलिपुत्र मंच पर उपस्थित हुए। विनोद अनुपम, अनंत विजय, और यतीन्द्र मिश्र के साथ वार्ताकार थे प्रशांत रंजन।
यतीन्द्र मिश्र ने कहा फिल्मों में पर्यावरण संरक्षण जैसी कोई बात नहीं होती, गीतकार के पास कोई दबाव नहीं होता, हां कहानी और गीत का अगर डिमांड है तब तो जरुरी है, जैसे ओ सजना बरसा बहार आयी, फिल्मांकन देखकर बारिश की अनुभूति होती है। पहले वैचारिक फिल्म बनाने वाले लोग थे। कला के सारे उपादान मनोरंजन के लिए है। सरकार पर दबाव बने कि पर्यावरण से जुड़ी फिल्में बने।
यतींद्र मिश्र ने कहा की गीतकार के पास कोई अधिकार नहीं हैं कि वह पर्यावरण पर गाना लिखे गीतकार कथानक से बंधा हुआ हैं। वह कथानक के हिसाब से गाना निकलता हैं। अब फ़िल्म का सेटअप कमर्शियल हैं।
अनंत विजय ने कहा कि भारतीय फिल्म अपनी मिट्टी से जुड़ी कहानी पर फिल्में बनेगी तो पर्यावरण संरक्षण जैसी बात नहीं होगी। भारत का लोक वो नहीं है जो जर्मनी का फोक है। भारतीय फिल्मों ने भारतीयता को छोड़ा है। सभी चीजें हमारी फिल्मों में हैं, सिर्फ नजरिये की जरुरत है। अनंत विजय ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद जबसे फ़िल्म में मार्क्सवादी लेखक आए तब पर्यावरण गौण हो गया। भारत में पर्यावरण पर लिखने वाले लोगों को सामाजिक सौहार्द वालों ने साईड कर दिया. पर्यावरण को पहले विचारधारा ने विस्थापित किया।
फ़िल्म समीक्षक विनोद अनुपम ने बताया कि सरकार हर साल फिल्मों से जुड़े पर्यावरण का पुरस्कार देती है। हमने खुद पर्यावरण की चिंता छोड़ दी है तो फिल्मों में भी यह चिंता नहीं दिखती। पर्यावरण पर बनी फिल्म इरादा को पुरस्कार भी मिला और दर्शकों का समर्थन भी मिला।
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