बंजारा समाज ने रचा इतिहास: हरियाबारा में मस्जिद और मदरसे की तामीर कर पेश की मिसाल घुमंतू बंजारा जाति के उत्थान की ओर एक मजबूत क़दम — बच्चों ...
बंजारा समाज ने रचा इतिहास: हरियाबारा में मस्जिद और मदरसे की तामीर कर पेश की मिसाल
घुमंतू बंजारा जाति के उत्थान की ओर एक मजबूत क़दम — बच्चों के लिए शिक्षा का दरवाज़ा खोल रहा है हरियाबारा का यह अनूठा प्रयास
अररिया: जहाँ आज भी समाज के कई तबके अपने बच्चों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में जूझ रहे हैं, वहीं बिहार के अररिया जिला अंतर्गत हरियाबारा में बंजारा समाज के लोगों ने एक ऐतिहासिक और सराहनीय पहल करते हुए मस्जिद और मदरसे की तामीर कर दी है। यह कोई साधारण निर्माण नहीं, बल्कि एक पूरी क़ौम के भविष्य की नींव है।
इस प्रयास में अनवर आज़ाद, मोहम्मद आज़ाद, अकरम आज़ाद समेत कई बंजारा समाज के लोग मौजूद रहे। समाज के वरिष्ठ सदस्य “साइकोलॉजी” भी इस ऐतिहासिक क्षण के साक्षी बने।
बिना सरकारी मदद, समाज के अपने दम पर रची जा रही नई इबारत। बंजारा समाज, जो कि अनुसूचित जनजाति के अंतर्गत आता है, आज भी सरकारी उपेक्षा का शिकार है। न शिक्षा, न स्वास्थ्य और न ही कोई आर्थिक सहायता, फिर भी यह समाज भीख मांगने, नाटक दिखाने या मजदूरी करके अपने बच्चों को पढ़ाने की कोशिश कर रहा है।
बंजारों का सवाल वाजिब है –
“जब हम अनुसूचित जनजाति में आते हैं, तो फिर हमारे बच्चों को रिजर्वेशन का लाभ क्यों नहीं दिया जा रहा?”
विदीत हो कि समस्तीपुर, दरभंगा, मुज़फ्फरपुर, मधुबनी, सीतामढ़ी जैसे जिलों में बंजारा/नट जाति की बड़ी आबादी है, फिर भी आज तक इन्हें न कोई स्थायी निवास का हक मिला, न ही जाति प्रमाण पत्र या आरक्षण से जुड़ी सुविधाएँ। सरकार से सवाल, समाज से उम्मीद। क्या सरकार इन गरीब बच्चों की हालत पर ध्यान देगी? क्या सरकार यह देखेगी कि एक घुमंतू समाज ने खुद के पैसे और मेहनत से मस्जिद और मदरसा खड़ा कर दिया, और अब उम्मीद कर रहा है कि उनके बच्चे भी "अच्छा इंसान" बन सकें?
बंजारा समाज की एक ही मांग है कि “हमें भी वह अधिकार मिले जो एक नागरिक होने के नाते बाकी लोगों को मिलता है।”
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